सोमवार, 15 नवंबर 2021

कर्नल विप्लव त्रिपाठी : टाइगर अब बस यादों में रहोगे (Colonel Viplav Tripathi: In Memory forever)

कर्नल विप्लव त्रिपाठी : टाइगर अब बस यादों में रहोगे



प्रिय मित्र, विप्लव,

यह लेख तुम्हारे जाने के बाद लिख रहा हूँ। मैं यह सब तुम्हें बार बार बताना चाहता था लेकिन जब तक तुम साथ थे कभी ऐसा अवसर आया ही नहीं जहाँ मैं तुमसे यह सब कह सकूं। कभी सोचा नहीं था तुम्हारे जाने के बाद यह सब लिखना पड़ेगा। बहुत कुछ हुआ पिछले कुछ सालों में सब पर बात करनी थी। लेकिन अब बस खुद से ही बातें करनी है। क्योंकि मेरे अंदर से तुम कहीं नहीं जा सकते। जीवन के इस खोखलेपन में तुम्हारी ही प्रतिध्वनि गूंजेगी। सदा के लिये।

तुम्हारा

टाइगर
(वह मुझे इसी संबोधन से बुलाता था जब हम मिलते थे, पता नहीं क्यों) (some army style, may be)

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        विप्लव त्रिपाठी, उम्र 40 साल, कर्नल, असम राइफल्स, भारतीय सेना, ये नाम उस शख्स का है जो अब शहीद हो चुका है। विप्लव से मैं पहली बार मिला था एनडीए (राष्ट्रीय रक्षा अकादमी) की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के दौरान 1997-98 में, देवांगन सर के घर पर। मैं देवांगन सर से गणित पढ़ता था। उस समय वह रींवा सैनिक स्कूल में था। शायद 11वीं में था, छुट्टियों में घर आया था। उस परिचय के बाद पता चला हमारे परिवार पुराने परिचित हैं। उसके बाद उससे कई बार मिला बातें की हर बार मुझे ऐसा लगता जैसे हम कई जन्मों के दोस्त है कभी भी ऐसा नहीं लगा कि नई दोस्ती है। मेरे दिमाग में क्या चल रहा है वह बिना बताए समझ जाता उसके मन में क्या है उस समय, मुझे अंदाजा लग जाता। भौतिक रूप से नजदीक न होते हुए भी वो हमेशा मेरे साथ ही था। उस समय सेल्फी कल्चर का उदय नहीं हुआ था। मोबाइल फोन पापुलर कल्चर में नहीं थे। 1-2 साल बाद उसका राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खड़गवासला, पुणे के लिये चयन हो गया। उसके बाद भी जब कभी वह घर आता उससे मुलाकात होती रही। (यहाँ ये बताना उतना जरूरी तो नहीं पर मैं एनडीए का एन्ट्रेंस एग्जाम क्लीयर नहीं कर पाया) । उसके बाद मैं अपने स्नातक की डिग्री के लिए संघर्ष कर रहा था तब तक वह लेफ्टीनेंट बन कर सेना में आ चुका था। हम जब मिलते तो एनडीए की ट्रेनिंग के किस्से कहानियाँ चलती रही। कुछ सालों बाद वो कैप्टन बना हम मिलते रहे। इस बीच मैंने यूपीएससी की सीडीएस के प्रवेश की लिखित परीक्षा पास की और एसएसबी के लिए क्वालीफाई किया परंतु मैं दोनों बार ( बैंगलोर और इलाहाबाद, SSB) 2004 में लगातार स्क्रीन आउट हो गया। उसके बाद भी हम मिलते रहे। इस दौरान मैं बच्चों के लिये साइंस क्लब चलाता था उसमें उसे बच्चों से मिलने के लिए बुलाया तब वह मेजर बन चुका था, मैं एक पत्रकार का काम कर रहा था। उस समय भी वह एकदम सरल और सौम्य था आसानी से बच्चों के साथ संवाद स्थापित कर लेना उसकी विशेषता थी। उस घटना का जिक्र मेरे साइंस ब्लाग में है। (https://cscagim.blogspot.com/2021/11/Major%20Viplav%20Tripathi%20with%20junior-scientists.html) । उस समय वह कोंगो यूएन शांति सेना अभियान से वापस लौटा था। बच्चों को आर्मी के बारे में बताते हुए, सेना में जाने के तरीके बताते हुए उसका जोश, जूनून हम सभी अपने अंदर महसूस करते थे। उसके कुछ सालों बाद उसने वेलिंगटन टेस्ट पास किया, ये क्या है मैं नहीं जानता लेकिन उनके आर्मी कैरीयर के लिहाज से ये बहुत महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है, क्योंकि इसके बाद ही आगे प्रमोशन होता है। उसके बाद भी हम अक्सर मिलते रहे। इस बीच मेरा चयन उप निरीक्षक पुलिस सेवा के लिए हो गया। यहाँ तक अगर आप पढ़ चुके हैं तो ये सोच रहे होंगे कि मैं अपनी असफलताओं और संघर्ष (थोड़ा सा) को जबरदस्ती यहाँ बताया है लेकिन ये इसलिये कि हमउम्र होने और लगभग एक साथ एनडीए की परीक्षा की तैयारी कर रहे थे एक समय (नितांत अलग-अलग पृष्ठभूमियों व परिस्थितियों में), परंतु सफलता के पैमाने पर हम दोनों दो विपरीत ध्रुवों पर थे, फिर भी इस पूरे समय के दौरान कभी भी उससे मिलते समय इस या किसी और पैमाने का अहसास न मुझे था न उसे। मैं थका हारा निराश उससे मिलता तब भी मैं उसका "टाइगर" था उससे मिलने के बाद एक नये जोश के साथ जिंदगी का सामना करने निकल पड़ता था। हमारे पुराणों में एक किरदार है बाली का जिसके सामने कोई भी आता था तो उसकी ताकत आधी हो जाती थी लेकिन विप्लव उसका उलट किरदार था। विप्लव के सामने जो भी आता था उसकी जिंदादिली दुगनी हो जाती थी। जिंदगी के हर पल को कैसे जीना है खुशनुमा तरीके से उसकी कोई भी टाइमलाइन देख लिजिए पता चल जाएगा। वह हर किसी का दोस्त था। मुझे जिंदगी के कुछ बुनियादी अनुशासन के तौर तरीके उसी ने सिखाए थे। मैदान पर मुझे कंमाडो टेक्नीक सिखाता था, ये मेरे पुलिस में आने के बहुत पहले की बात है। उसने मुझे फ्रंट रोल व बैक रोल सीखा दिया था। आर्मी का अनुशासन व ट्रेनिंग उसके रग-रग में था। अभी कई सोशल मिडिया साइट पर उसके बेटे अबीर का ट्रेनिंग सर्किट का विडियो वायरल हो रहा है। वो ऐसा ही था जो उसके साथ रहेगा वो उसे आर्मी कैडेट बना देता था बिना जोर जबरदस्ती। अबीर के चेहरे और उसकी रिपोर्टिंग देखिए समझ आ जाएगा कि विप्लव किसी को भी खेल-खेल में क्या से क्या बना देता था। वो जादूगर था इंसानी संबंधों का।
        भारतीय आर्मी की ट्रेनिंग की उद्दात परंपराओं का सच्चा प्रतिनिधि था विप्लव। उसके रग-रग में आर्मी बसती थी। वन्स ए आर्मीमेन आलवेज ए आर्मीमेन। रींवा सैनिक स्कूल से एनडीए वहाँ से कमीशन होने के बाद काश्मीर, सीयाचिन, यूएन के शांति सेना का कांगो अभियान, लखनऊ उसके बाद मिजोरम,फिर मणिपुर इस बीच उसकी पोस्टिंग कहीं और भी रही हो तो मुझे मालूम नहीं क्योंकि इस बीच मैं अपनी नई नौकरी में व्यस्त हो गया। अब हमारी छुट्टियाँ एक साथ मैच नहीं कर रही थी। फिर हम कुछ बार मिल पाए। एक बेटा, भाई, पति, पिता और एक दोस्त के रूप में उसके जिंदादिली को मैंने देखा है पर इन सबसे भी कुछ खास था वो ये कि वो एक बेहतरीन इंसान था। मैं उसे भारतीय सेना का एक सच्चा रत्न मानता हूँ जो अब खो गया है। भारतीय सेना के इस जांबाज अधिकारी का बलिदान क्या रंग लाएगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। तब तक बस तुम्हारी यादों के सहारे।

-नीलाम्बर मिश्रा,

(ऊपर जो कुछ भी है वो मेरा नितांत निजी अनुभव है)

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